Monday, February 3, 2014

लघु --कथा

लघु-कथा

आज फिर धृतराष्ट्र का दरबार सजा हुआ था। शतरंज कि बिसात बिछी हुई थी ,आज फिर युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया था। भीष्म पितामह सर झुकाये बैठे हुए थे। पांचो पांडव नीचा मुंह किये दरबार में चुपचाप द्रौपदी के आने का इंतजार कर रहे थे। और वो दुष्ट दुर्योधन जंघा ठोक कर द्रौपदी पर अपना अधिकार साबित करने कि ख़ुशी में तल्लीन था। कंही दूर बैठे कृष्ण भगवान चैन कि बांसुरी के तार छेड़ रहे थे। माहौल बोझिल दिखायी दे रहा था ,कि अचानक हलचल शुरू हो गई। द्रौपदी दरबार में आ चुकी थी। सांवला रंग,सुडौल कद -काठी ,खुले हुए लम्बे केश और आत्मविश्वास से लबरेज पांचाली जैसे ही दरबार में प्रविष्ट हुई कई जोड़ी आँखे उसे देखने लगी। तभी दुर्योधन दहाड़ा -
'दुशासन इसका वस्त्र हरण करो। "
तभी पांचाली तेज आवाज़ में बोली -'रुको ,जुआरियो ये द्वापर युग नहीं , आधुनिक युग है ,मैं घरेलू हिंसा कानून कि प्रति और वकील साथ लाई हूँ। अब देखती हूँ तुम सब कानून के शिकंजे से कैसे बचते हो ? सभी" दरबारी हतप्रभ थे। तभी पंडाल में जोरो कि तालियों कि गड़गड़ाहट गूंज उठी ,आज का नाटक ख़त्म हो चुका था। एक अच्छे सन्देश के साथ। -----सुषमा दुबे।---------

Saturday, February 1, 2014

एक नजर इधर भी ................ आजकल हाइकू विधा में लिखना शुरू किया है ,कृपया देखे -

छाया बसंत
टेसू खिलनेलगे
मन बावरा

आया बसंत
पीली सरसो झूमे
पिया बिदेस

नयी सुबह
झूम रही कलियाँ
आये सजना

सुन्दर मन
नया बसंत देखो
हर्षित तन

नीला अम्बर
लगे और सुन्दर
गा रहा फाग

Wednesday, January 29, 2014

बचपन था 
कितना सुन्दर 
खेले जी भर